जो कार्य जितनी श्रद्धा से किया जायेगा, उतना ही श्रेष्ठ होगा.
-महात्मा बुद्ध
कर्म करने पर ही तुम्हारा अधिकार है, फल में नहीं. तुम कर्मफल का कारण मत बनो और अपनी प्रवृति कर्म करने में रखो.
-श्रीमद्भागवत गीता
जो कर्म विद्या, श्रद्धा ओर योग से युक्त होकर किया जाता है, वही प्रबलतर होता है.
-छान्दोग्योपनिषद्प
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि…
-भगवान श्री कृष्ण
पुरूष पुण्यकर्म से पुष्यवान होता है और पापकर्म से पापी होता है.
-बृहदारण्य उपनिषद्
योगस्थ होकर कर्मो को करो. नीरस होकर कर्म मत करो.
-अक्ष्युपनिषद्
जो कर्म के फल का विचार न कर केवल कर्म की ओर दौड़ता है, वह उसका फल मिलने के समय उसी प्रकार शोक करता है जैसे ढाक का वृक्ष सीचने वाला करता है.
-वाल्मीक
जो कार्य करने से न तो धर्म होता है धर्म होता है और कीर्ति बढ़ती हो और न अक्षय यश ही प्राप्त होता हो, उल्टे शरीर को कष्ट होता हो, उस कर्म का अनुष्ठान कौन करेगा.
-वाल्मीकि
कर्म ही धर्म का दर्शन है.
-स्वामी विवेकानंद
जो-जो काम दूसरे के अधीन हों, उन्हें यत्नपूर्वक छोड़़ दे. जो अपने वश में हों, उन्हें यत्नपूर्वक पूरा करे.
-मनुस्मृति
कर्म करो और फल की चिंता मत करो.
-गीता
जिस काम को करते हुए अन्तर आत्त्मा का परितोष हो उसे प्रयत्नपूर्वक करे और उसके विपरीत कर्म को छोड़ दे.
-मनुस्मृति
जो अर्थ और काम धर्म-विरूद्ध हैं, उनका त्याग करे. भविष्य में दुखः देने वाले धर्म-कार्य का त्याग करे और लोकनिन्दित धर्म-कार्य का भी त्याग करे.
-मनुस्मृति
जो विद्याएं कर्म का सम्पादन करती है, उन्ही का फल दृष्टिगोचर होता है.
-अज्ञात
हे संजय ! ज्ञान का विधान भी कर्म को साथ लेकर ही है, अतः ज्ञान में भी कर्म विद्यमान है. जो कर्म के स्थान पर कर्मो के त्याग को श्रेष्ठ मानता है, वह दुर्बल है, उसका कथन व्यर्थ ही है.
-वेदव्यास
सफलाता होगी ही, ऐसा मन में दृढ़ विश्वास कर, सतत विसाद-रहित होकर तुझे उठना चाहिए, सजग होना चाहिए और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराने वाले कार्यो में लग जाना चाहिए.
-वेदव्यास
कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है.
-वेदव्यास
यज्ञार्थ कर्मो के अतिरिक्त अन्य कर्मो से इस लोक में बंधन होता है.
-वेदव्यास
‘कर्म क्या है और अकर्म क्या है’, इस विषय में बुद्धिमान पुरूष भी माहित होते हैं.
-वेदव्यास
कर्म की गति गहन है.
-वेदव्यास
हे अर्जुन जिसने समत्व बुद्धि रूप योग द्वारा सब कर्मो का संन्यास कर दिया है, जिसने ज्ञान से सब संशय दूर किए हैं, और जा
आत्मबल से युक्त है, उसको कर्म नही बाँधते हैं.
-वेदव्यास
हे अर्जुन सहज कर्म दोष-युक्त होने पर भी त्यागना नहीं चाहिए क्योंकि धुएं से अग्नि के सदृष सब ही कर्म किसी न किसी दोष से आवृत होते हैं.
-वेदव्यास
हम सभी कर्म के अधीन हैं.
-वेदव्यास
कर्म यदि अभिमानपूर्वक किया जाए तो सफल नहीं होता. त्यागपूर्वक किया हुआ कर्म महान् फल-दायक होता है.
-वेदव्यास
कर्म वही है जो बन्धनकारक न हो. विद्या वही है जो मुक्तिकारक हो. इसके अतिरिक्त अन्य कर्म प्रयास मात्र है और अन्य विद्या शिल्प-निपुणता मात्र है.
-विष्णुपुराण
जो भारतवर्ष में जन्म लेकर पुण्य कर्मो से विमुख होता है, वह अमृत का कलष छोड़कर विष का पाव अपनाता है.
-नारदपुराण
जो छहों अंगो सहित वेदों और उपनिषदों का ज्ञाता होकर भी अपने आचार से गिरा हुआ है, उसे पतित ही समझना चाहिए क्योंकि वह कर्मभ्रष्ट है.
-नारदपुराण
न रूप, गौरव का कारण होता है ओर न कुल. नीच हो या महान् उसको कर्म ही उसकी शोभा बढ़ाता है.
-भास
ज्ञान के लिए किया जाने वाला कर्म, सभी कर्मो में श्रेष्ठ है.
-अश्वघोष
व्यर्थ कार्यो के लिए प्रयत्न करने वाले कोन व्यक्ति सचमुच तिरस्कार के पात्र नहीं होते ?
-कालिदास
कार्य से पुरूष स्त्री हो जाता और कार्य से ही स्त्री पुरूष हो जाती है.
-श्रीहर्ष
हम कर्मो को नमस्कार करते हैं, जिन पर विधाता का भी वश नहीं चलता.
-भर्तृ हरि
कोई काम चाहे अच्छा हो या बुरा, बुद्धिमान को पहले उसके परिणाम का विचार करके तब काम में हाथ लगाना चाहिए.
-र्भृत हरि
सभी जन्तु अपने अपने कर्म के अनुसार जन्म लेते हैं, कर्मानुसार ही मरते हैं और कर्मानुसार ही विद्यमान रहते हैं. जो व्यक्ति जब जैसा कर्म करता है, वहीं देवता है.
-कर्णपूर
ईश्वर को अर्पित करके तथा इच्छा त्याग कर किया गया कि चित्तशोधक तथा मुक्तिसाधक होता है.
-रमण महर्षि
बुद्धिमान व्यक्ति को फलशून्य, कठिन समान लाभ-हानि वाले तथा अशक्य कर्मो को प्रारंभ नहीं करना चाहिए.
-बल्लालकवि
जैसे कुम्हार मिट्टी के पिंडों से जो चाहता है, बनाता है, उसी तरह अपना किया हुआ कर्म मनुष्योें को बनाता है.
-नारायण पंडित
लेने-देने ओर करने योग्य कार्य यदि तुरन्त नहीं कर लिया जाता तो समय उसका रस पी जाता है.
-नारायण पंडित
आज्ञा के सिवा जो कुछ है, वह यदि प्रत्यक्ष और अनुमान से ठीक न जँचे, तो उसका दूर से ही अनादर कर देना चाहिए.
-रामावतार शर्मा
मनुष्य धन द्वारा अधिक जीता है. विद्या से सुखपूर्वक जीता है. शिल्प से थोड़ा जीता है. बिना कर्म के मनुष्य जीवित ही नहीं रहता है.
-अज्ञात
अज्ञानी को कर्म लिप्त करते हैं, ज्ञानी को कर्म लिप्त नहीं करता, जैसे घी हथेली को लिप्त करता है लेकिन जिह्ना को नहीं.
-अज्ञात
धन भूमि पर, पशु गोष्ठ में, पत्नी घर के द्वारा पर, परिवारीजन इमषान में तथा देह चिता में रह जाती है. परलोक मार्ग में जीव अकेला ही जाता है.
-अज्ञात
किये हुए शुभ—अशुभ कर्म को अवश्य भोगना पड़ेगा. किये हुए कर्म का शतकोटि कल्पों में भी क्षय नहीं होता.
-अज्ञात
जिससे अपयश और कुमति हो तथा जिससे पुण्य नष्ट हो जाएँ, ऐसा कर्म कभी न करें.
-अज्ञात
उसी काम का करना ठीक है जिसे करके अनुताप करना न पड़े, और जिसके फल का प्रसन्न मन से भोग करें.
पालि
-धम्मपद
कर्म सदा कर्ता के पीछे-पीछे चलते हैं.
-उत्तराध्ययन
कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय. कर्म से ही वैश्य होता है और कर्म से ही शुद्र.
-उत्तराध्ययन
अग्नि-प्रवेश द्वारा मर जाना अच्छा है, परन्तु वह नहीं करना चाहिए, जिसका उपहास दूसरे करें.
-विद्यापति
बुद्धिमान व्यक्ति को फलशून्य, कठिन समान लाभ-हानि वाले तथा अशक्य कर्मो को प्रारंभ नहीं करना चाहिए.
-बल्लालकवि
जैसे कुम्हार मिट्टी के पिंडों से जो चाहता है, बनाता है, उसी तरह अपना किया हुआ कर्म मनुष्योें को बनाता है.
-नारायण पंडित
लेने-देने ओर करने योग्य कार्य यदि तुरन्त नहीं कर लिया जाता तो समय उसका रस पी जाता है.
-नारायण पंडित
आज्ञा के सिवा जो कुछ है, वह यदि प्रत्यक्ष और अनुमान से ठीक न जँचे, तो उसका दूर से ही अनादर कर देना चाहिए.
-रामावतार शर्मा
मनुष्य धन द्वारा अधिक जीता है. विद्या से सुखपूर्वक जीता है. शिल्प से थोड़ा जीता है. बिना कर्म के मनुष्य जीवित ही नहीं रहता है.
-अज्ञात
अज्ञानी को कर्म लिप्त करते हैं, ज्ञानी को कर्म लिप्त नहीं करता, जैसे घी हथेली को लिप्त करता है लेकिन जिह्ना को नहीं.
-अज्ञात
धन भूमि पर, पशु गोष्ठ में, पत्नी घर के द्वारा पर, परिवारीजन इमषान में तथा देह चिता में रह जाती है. परलोक मार्ग में जीव अकेला ही जाता है.
-अज्ञात
किये हुए शुभ—अशुभ कर्म को अवश्य भोगना पड़ेगा. किये हुए कर्म का शतकोटि कल्पों में भी क्षय नहीं होता.
-अज्ञात
जिससे अपयश और कुमति हो तथा जिससे पुण्य नष्ट हो जाएँ, ऐसा कर्म कभी न करें.
-अज्ञात
उसी काम का करना ठीक है जिसे करके अनुताप करना न पड़े, और जिसके फल का प्रसन्न मन से भोग करें.
पालि
-धम्मपद
कर्म सदा कर्ता के पीछे-पीछे चलते हैं.
-उत्तराध्ययन
कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय. कर्म से ही वैश्य होता है और कर्म से ही शुद्र.
-उत्तराध्ययन
अग्नि-प्रवेश द्वारा मर जाना अच्छा है, परन्तु वह नहीं करना चाहिए, जिसका उपहास दूसरे करें.
-विद्यापति
वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही उचित कर्म है.
-वृन्दावनलाल वर्मा
बिना करनी के सोचते रहना ही कदाचित् पाप है.
-हजारीप्रसाद द्विवेदी
तन और मन दोनों को सदैव सत्कर्म में प्रवृत्त रखो.
-डोगरेजी महाराज
छोटे से छोटा कर्म भी परमात्मा को अर्पित पुष्प है.
-सत्य साई बाबा
अपनी भलाई के लिए किया गया काम ‘बंधन’ है जब कि बहुजन-हिताय किया गया कमा सब बंधनों से मुक्ति के लिए है.
-शिवानन्द
कर्तव्य, दया, तथा प्रेम से प्रेरित होकर किए कार्य उन कार्यो से हजार गुना श्रेष्ठ होते है, जो केवल धन के लिए किए जाते है. पहली प्रकार के कार्य आत्म त्याग और साहस की प्रेरणा देते हैं जबकि दूसरी प्रकार के कार्य धन-प्राप्ति के साथ ही समाप्त हो जाते हैं.
-सैमुअल स्माइल्स
कर्म ही सबसे बड़ा शिक्षक है.
-सैमुअल स्माइल्स
किसी के मरने पर लोग पूछेगें-‘‘वह कौनसी सम्पत्ति छोड़ गया है ?’’ परन्तु देवता पूछेगें-‘‘ तुम अपने पीछे कौन से अच्छे कर्म छोड़ आये हो ?’’
-सैमुअल स्माइल्स
कार्य के लिए कर्म करो. कर्म अपना पुरस्कार आप ही है.
-रामतीर्थ
छोटी-छोटी क्रियाओं से महान कर्मो का निमार्ण होता है.
-शवानंद
सारे ज्ञान-ध्यान का लक्ष्य सही कर्म है.
-चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
हमें कर्म का त्याग नहीं अपतिु उसका दिव्यीकरण करना चाहिए. हमें हद कर्म पूर्ण विनम्रता तथा ईशवर-इच्छा के प्रति पूर्ण समर्पण से करना चाहिए.
-स्वामी रामदास
कर्म स्वयं वाक्यटुता है.
-शेक्सपियर
जितना हम अपने कर्मो को निर्धारित करते हैं, उतना ही हमारे कर्म हमें निर्धारित करते हैं
-जार्ज इलियट
अपने कर्तव्य को करो जिसे तुम जानते हो क कर्तव्य है. दूसरा कर्तव्य स्वयं ही स्पष्ट हो जाएगा.
-कार्लाइल
व्यवहार में लाए जाने पर महान् विचार ही महान् कर्म बन जाते हैं.
-हैजलिट
वह कर्म सबसे उत्तम है जो अधिकतम लोगों को सबसे बड़ी प्रसन्नता प्रदान करता है.
-फ्रांसिस हचेसन