शत्रु के भी गुण ग्रहण करने चाहिएँ और गुरू के भी दोष बताने में संकोच नहीं करना चाहिए.

-वेदव्यास

कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसमें सर्वधा गुण ही गुण हों. ऐसी भी वस्तु नहीं है जो सर्वथा गुणों से वचित ही हो. सभी कार्ये में अच्छाई और बुराई दोनों ही देखने में आती हैं.

-वेदव्यास

सज्जनों के लिए गुण-स्वरूप विद्या, तप, धन, शरीर, युवास्था और उच्चकुल-ये छह दुष्टों के लिए दुर्गुण दोषपूर्ण दृष्टि वाले होकर वे ढीठ लोग महापुरूषों की तेजस्विता को नहीं देख पाते.

-भागवत

गुण और दोष के लक्षण बहुत क्या बताए जाएं ? गुण और दोष दोनों की ओर दृष्टि जाना ही दोष है और गुण है दोनों से अलग रहना.

-भागवत

अपने श्रेष्ठ गुणों से अलंकृत होकर कुरूप मनुष्य भी दर्शनीय हो जाता है, किन्तु गंदे दोषों से व्याप्त होकर रूपवान भी कुरूप हो जाता है.

-अश्वघोष

गुणों के समुदाय में एक दोष चन्द्र की किरणों मे कलंक की तरह लीन हो जाता है.

-कालिदास

बन्धुओं के गुण और दोष में गुण पर दृष्टि डालनी चाहिए, दोषों पर नहीं.

-कर्णकपूर

कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसमें सर्वधा गुण ही गुण हों. ऐसी भी वस्तु नहीं है जो सर्वथा गुणों से वचित ही हो. सभी कार्ये में अच्छाई और बुराई दोनों ही देखने में आती हैं.

-वेदव्यास

सज्जनों के लिए गुण-स्वरूप विद्या, तप, धन, शरीर, युवास्था और उच्चकुल-ये छह दुष्टों के लिए दुर्गुण दोषपूर्ण दृष्टि वाले होकर वे ढीठ लोग महापुरूषों की तेजस्विता को नहीं देख पाते.

-भागवत

गुण और दोष के लक्षण बहुत क्या बताए जाएं ? गुण और दोष दोनों की ओर दृष्टि जाना ही दोष है और गुण है दोनों से अलग रहना.

-भागवत

अपने श्रेष्ठ गुणों से अलंकृत होकर कुरूप मनुष्य भी दर्षनीय हो जाता है, किन्तु गंदे दोषों से व्याप्त होकर रूपवान भी कुरूप हो जाता है.

-अश्वघोष

बन्धुओं के गुण और दोष में गुण पर दृष्टि डालनी चाहिए, दोषों पर नहीं.

-कर्णकपूर

बाद-विवाद में कुशल व्यक्ति दोषों को भी गुण और गुणों को भी दोष सिद्ध करने में समर्थ हो सकता है किन्तु वह सत्य नहीं होता. दोष, दोष ही है और गुण, गुण ही हैं.

-अज्ञात

न सब कल्याण कारक ही है, न सब बुरा ही है.

-जातक

राजा में फकीर छिपा है और फकीर में राजा. बड़े-से-बड़े पंडित में मूर्ख छिपा है और बड़े-से-बड़े मूर्ख में पडित. वीर में कायर और कायर में वीर सोता है. पापी में महात्मा और महात्मा में पापी डूबा हुआ है.

-सरदार पूर्णसिंह

मनुष्य-घर,गुण-दरवाजा,दोष-दीवारें

-विनोवा

हीन से हीन प्राणी में भी एक-आध गुण है, उसी के आधार पर वह जीवन जी रहा है.

-विनोवा

एक ही वस्तु किसी स्थान पर काजल बन कर शोभा देती है, कहीं कालिख बनकर बुरी लगती है.

-हिन्दी लोकोक्ति

इतना सुन्दर गुलाब का फूल उसमें भी कांटे !

-हिन्दी लोकोक्ति

अपने गुण-दोषों के अनुसार ही अपनी भलाई-बुराई और सुख-दुःख चलते हैं.

-एर्रना

अपना क्रोध ही अपना शत्रु है. अपनी शांत भावना ही अपना रक्षक है. अपनी दया की भावना ही रिश्तेदार है. अपना संतोष ही अपने लिए स्वर्ग है. और अपना दुःख ही अपना नरक है.

-बद्देना